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पराधीन भारत में शिक्षा की व्यवस्था अच्छी नहीं थी ,विशेषकर उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में शिक्षा की व्यवस्था शहर तक ही सीमित थी ,संपन्न वर्ग के लोग ही अपने बच्चो की शिक्षा की व्यवस्था कर पाते थे, बाबू नाथ बक्श सिंह जो जगदीशपुर गोरखपुर स्टेट के मालिक थे , उन्होंने शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए १९०४ में नाथ चंद्रावत संस्कृत पाठशाला की स्थापना की ,इस पाठशाला में अपनी मातृ भाषा हिंदी और संस्कृत के साथ अन्य विषयों की भी जानकारी ले सकते थे , वर्ष १९४४ में इस पाठशाला को सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से मान्यता मिल गयी ,२७ मई २००४ में पाठशाला दो भागो में शासन द्वारा विभाजित किया गया जो क्रमशः नाथ चंद्रावत संस्कृत माध्यमिक विद्यालय जगदीशपुर और नाथ चंद्रावत संस्कृत महाविद्यालय जगदीशपुर गोरखपुर के नाम से प्रचलित है , नाथ चंद्रावत संस्कृत महाविद्यालय में शास्त्री और आचार्य की कक्षाएं संचालित होती है। जिसका संचालन सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के परिनियमावली के अनुसार होता है ,नाथ चंद्रावत ने अपना एक शताब्दी सफलतापूर्वक पूरा करते हुए संस्कृत की ज्योति से क्षेत्र को जगमगाते हुए सफलता के नए आयाम तय कर रहा है ।